वीर प्रभु तुज दर्शन थी,
Veer Prabhu Tuj Darshan Thi
वीर प्रभु तुज दर्शन थी, पाप गया मुज आतमथी,
पुण्य परिणति जो जागी, जगपती जिन तुज लय लागी,
दूर न कर प्रभु तन मन थी, वीर प्रभु तुज दर्शन थी...
गुण समुहथी तुं भरियो, हुं छुं अवगुणनो दरियो,
दोष टाळ मुज आतमथी, वीर प्रभु तुज दर्शन थी...
तुं प्रभु जगनो तारक छे, आ जन तारो बाळक छे,
सेवकने जो करुणाथी, वीर प्रभु तुज दर्शन थी...
तुं शुं मुजने नहि तारे, हुं छुं शुं तुजने भारे,
जश लेने सिव दई जगथी, वीर प्रभु तुज दर्शन थी...
गौतमनीति गुण बोले, दानी नहि कोई तुज तोले,
कर प्रसन्न दई शिववरथी, वीर प्रभु तुज दर्शन थी...
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