Hu Taro Tu Maro | Prabhu Bhagti Geet | हू तारो तू मारो...

Hu Taro Tu Maro | Prabhu Bhagti Geet |
 हू तारो तू मारो...





झंखु छु हु, व्हाल भरी द्रष्टि ने,

सर्वस्व तारु ते मुजने दिधु छ,
बस तारी, बस तारी, मुजने कमी छे,

आवोने..आवोने..(२)

तारु ने मारु हो मिलन, के झंखे छे मारा आ नयन,

श्वासो मा तारु छे रटन, झंख छ तारु ज शरण,
हु तो तारा प्रेम मा छु खोवायो, तारा रंग मा छु रंगायो,
ना थाजे दूर कदी.. हु तारो तू मारो...हु तारो तू मारो...

शु वांक छे गुरु मारो, वचनों थी वंचित राख्यो,
नियती नु शु छे इशारो, बस मौन नो योग पाम्यो,
एक वार आवी ने मुझने, मारा नाम थी तो पुकारो,

अमूल्य ए क्षण नी मुझने, क्यारेक तो भेट आपो..
तारो मारो प्रेम तो छ सवायो, तारा मौन मा छु भीजायो,
ना थाजे दूर कदी.. तू मारो हु तारो...हू तारो तू मारो...

तू सूरज ने हु तारी रज, कहु छु तुझने दिल नी अरज,
तू तारण ने मारु शरण, के मळे तुझ हस्ते रजोहरण,

अंते वासी थवाने तारो, एकांते करुणा करजो,

सर्वांशे बनु अंश तारो, हवे आवी ने मुझने तारो,
हु छु तारा व्हालमां सौथी व्हालो, तारो शिष्य सौथी निरालो,
ना थाजे दूर कदी.. हु तारो तू मारो...हु तारो तू मारो...

आपीने तारी ओळख, तुझ अंतरमां वसाव्यो,

अद्रुश्य कृपा वहावी, तू दूर जइने छुपायो,
रइतो रहयो छु हु भवमां, क्या तारु सरनामु शोधू

तारा चरने भेट धरवा, मारामा काई ना मारु,
तू छे मारो तीर्थ ने तीर्थंकर, बनी जाउ तारी माटे हु गणधर,
ना थाजे दूर कदी.. तू मारो हु तारो...हु तारो तू मारो...
ना दूर तुझ थी रहु के, ना दूर मुज थी थजे,

तारा जेवो हु बनु, कृपा तू एवी करजे,
हु तो बस तारा गुणोनो ग्राहक, तारा ज गुणोनो चाहक,
गुणोनो वाहक बनु.. तू मारो हु तारो...हु तारो तू मारो...

तने छोडीने जगतमां, जावू हु जेनी पासे,
अद्रुश्य तारी आंखों, तू ज्या छे त्या थी निहाळे,

अंतरमा ज्ञान द्रष्टि, आवीने तू जगाड़े,

हु भूलो ना पडु क्या, भूलोने मारी सुधारे,
हु तो तारी द्रष्टि मां छु खोवायो, मारी द्रष्टि मां तू समायो,
ना थाजे दूर कदी.. तू मारो हु तारो...हु तारो तू मारो...

मन थी जे तू इच्छे गुरु, इच्छाने अनुरुप बनु,

तारी सेवाने काजे गुरु, तारो पड़छायो बनी रहू,
हु तो तारो ने तारो छु गुरु, तारी आणा ऐ जीवन मारु,
अनुशासन मा आतम हु धरु, तारी संगे हु मुक्तिने वरु,
एक तारी स्मित नो छू दिवानो, नैनों मा तारा वसवानो,

ना थाजे दूर कदी.. तू मारो हु तारो...हु तारो तू मारो...

तारी साधना नी क्षणों ने, मझ घड़तर मा वितावे,
मारी मुक्तिने केळववा, मारा दोषोने पण वधावे,
हर भवमां ते करेलू, मारु घडतर शु गनावु,

आ जीवन ते दिधु छे, वळतर तने शु हु आपु,
हु तो निश्चित थइने रेहवानो, तारी साथे हु वसवानो,
ना थाजे दूर कदी.. तू मारो हु तारो...हु तारो तू मारो...


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