Daana Aangar Ki Sajjay Lyrics
धन्नो अणगार की सज्जाय
चरण कमल नमी वीरनां रे, पूछे श्रेणिकराय रे, मुनिशुं मन मान्यो...
चउद सहस मुनि ताहरे रे, अधिको कोण कहेवाय रे, मुनिशुं मन मान्यो...
जिन कहे अधिको माहरे रे, धन धन्नो अणगार रे, मुनिशुं मन मान्यो...
रिद्धि छती जेणे प्रिहारी रे, तजी तरुणी परिवार रे, मुनिशुं मन मान्यो...
सिंह तणी पेरे नीकळी रे, पाळे व्रत सिंह समान रे, मुनिशुं मन मान्यो...
क्रोध लोभ माया तजी रे, दुर कर्यो अभिमान रे, मुनिशुं मन मान्यो...
मुज हाथे संयम ग्रही रे, पाळे निरतिचार रे, मुनिशुं मन मान्यो...
छट्ठ छट्ठ आंबिल पारणे रे, लीये नीरस आहार रे, मुनिशुं मन मान्यो...
वंछे न कोई मानवी रे, तेवो लीये आहार रे, मुनिशुं मन मान्यो...
चालतां हाड खडखडे रे, जेम खाखराना पान रे, मुनिशुं मन मान्यो...
शकट भर्युं जेम कोयले रे, तिम धन्ना मुनिनुं वान रे, मुनिशुं मन मान्यो...
पंच समिति त्रण गुप्तिशुं रे, रंगे रमे निशदिन रे, मुनिशुं मन मान्यो...
सर्वार्थसिद्ध सुख पामीयो रे, धन धन्नो अणगार रे, मुनिशुं मन मान्यो...
नवमे अंगे जेहनो रे, वीरे कह्यो अधिकार रे, मुनिशुं मन मान्यो...
पंडित जिनविजय तणो रे, नमे तेहने वारंवार रे, मुनिशुं मन मान्यो...
प्रात: उठीने तेहनुं रे, नाम लीजे सुविचार रे, मुनिशुं मन मान्यो...
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